असुरक्षित पत्रकार
मौन दर्शक सरकार
आधुनिक मानव जीवन में संचार साधन के युग में विभिन्न क्षेत्र के दिशा निर्देश के दृष्टिकोण से पत्रकारिता और उसके निष्पादक पत्रकारों का अत्याधिक महती योगदान रहा है। स्वाधीनता से पूर्व पत्रकारों ने जो स्वाधीनता सेनानी भी थे, पत्रकारिता के माध्यम से देश में जहां राजनीतिक एवं सामाजिक जागृति में सर्वाधिक सक्रिय योगदान दिया एवं शोषण अन्याय से त्रस्त जन-जन को वाणी देने का स्तुत्थ्य मार्ग प्रशस्त किया, वही जंग-ए-आजादी के लिए पत्रकारिता को हथियार बनाया, तभी तो अलामा-ए-इकबाल ने कहा “गर मुकाबिल हो तोप तो अखबार निकालो” मगर आजादी के बाद हालात बदल गए है और पत्रकारिता चारों ओर तरह-तरह से उत्पन्न खतरों से ग्रसित है तो पत्रकारों का जीवन जोखिम से भरा और असुरक्षित है, तथाति वे इन सबके बावजूद अपने कर्म पथ पर अग्रसर है तथा सरकार और अवाम के बीच सेतु बने हुए है और लोकतंत्र के चोथे स्तंभ के रूप में अपने दायित्वों का निर्वाह पूरी निष्ठा के कर रहे है।
पत्रकारिता की स्पष्ट, सत्यवादी और बेबाक वाणी आजाद भारत के राजनितिज्ञों के साथ ही अधिकारियों, उद्योगपतियों और माफिया लोगों को सहन नहीं हो रही है। वे उसे दबाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाने पर आमादा है। पत्रकारिता से सर्वाधिक ना इत्तफाकी राजनेताओं को है, जो अपने प्रशस्ति के इतने आदी हो चुके है, कि उन्हे रत्ती भर भी आलोचना असहनीय हो जाती है। जबकि कभी नेपोलियन बोनापार्ट जैसे महान विजेता और एडोल्फ, हिटलर जैसे तानाशाह ने कहा था कि वे एक साथ चार मोर्चो पर सर्वशक्तिमान सेनाओं का मुकाबला कर सकते है। मगर छोटे से छोटे उस समाचार पत्र का सामना नहीें कर सकते है, जो सचा और ईमानदार है। अब हालात बदल गए है, लोकतंत्र में इन कथित नियामकों के कोप का भाजन सर्वाधिक पत्रकारों को ही होना पड़ रहा है और इनकी सुरक्षा के लिए शासन प्रशासन ने कोई विशेष प्रावधान नहीं किये है। विधि विधान यानी कानून कायदे और नियम अधिनियम ही यह दंड़ है जिसे बनाने, उसे लागू करने तथा उसकी पालना सुनिश्चित करने का अधिकार तो सरकार का है तो, उसका दायित्व भी है। भारत के ब्रिटिश शाही, राजशाही और सामंतशाही से मुक्ति के साथ ही विश्व के सबसे बडे़ लोकतांत्रिक देश के रूप में प्रतिष्ठिापित होने के बाद पत्रकारिता की भूमिका का दायरा और विषय क्षेत्र बढ़ जाने से पत्रकारों को प्रचुरता में संशोधन उपलब्ध हुए तो प्रताड़ना, मारपीट, हमले तो जान जोखिम में डाल कर कर्तव्य निर्वाह के दौरान जान भी गंवानी पड़ी और यह सब इसलिए क्योंकि केन्द्र या राज्य सरकारों की ओर से उनकी हिफाजत के लिए कोई विशेष प्रावधान नही किए गए। इंडियन फैडनेशन आॅफ वर्किंग जर्नलिस्ट (आई.एफ.डब्ल्यू.जे.)जो देश की पत्रकारिता के सर्वागीण विकास और पत्रकारों की उन्नति के लिए पिछले सात दशकों से तो सक्रिय है ही, अब पत्रकारों पर चारों ओर मंडरा रहे खतरे को देखते हुए संघर्षशील तथा क्रियाशील भी है तथा केन्द्र के साथ ही राज्य सरकारों से पुरजोर मांग करता है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए पृथक से विशेष कानून बनाया जाए। आई.एफ.डब्ल्यू.जे. के समस्त सदस्य दृढ़ संकल्पित है कि ऐसा होने तक वे अपना संघर्ष जारी रखेंगे क्योंकि जन विश्वास और समर्थन उनके साथ है।